हाल ही में प्रधानमंत्री जी की जयपुर रैली में कुछ नौजवानों ने हाथ में कुछ झंडे लहराए, इन झंडों पर लिखा था, ERCP मांगे राजस्थान, बदलें में वहां उपस्थित समर्थकों ने उनके झंडे छीने, गालीगलोच की और मारपीट पर उतर आये। ट्वविटर पर वीडियो देखा, जो लोग चोट खा कर आवाज बुलंद कर रहे थे उनमे से एक पवन भजाक को देखते ही मुझे ईआरसीपी पर शोध के के लिए बांदीकुई में कुछ दिन पहले कि मेरी यात्रा की याद आई। देश में पहली ट्रेन 1854 में चली और राजस्थान में 1874 में, बांदीकुई से आगरा के बीच चली। अंग्रेजों ने जब इसे रेलवे जंक्शन के तौर पर डेवलप करना शुरू किया तो अंग्रेज परिवारों की बसावट भी होने लगी, और एक सुंदर रेलवे कॉलोनी नक़्शे पर आई। हमें इस रेल नगरी जाने का सौभाग्य मिला ERCP संयुक्त मोर्चा के महासचिव पवन भाजक जी के न्योते पर, जब हमने ERCP के बारे में जानकारी के लिए संपर्क किया तो सामने आया खरी जानकारी फील्ड में जा कर लोगों से मिलने और अनुभव करने से ही मिल सकती है। ERCP - पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना, राजस्थान के 13 जिलों को पीने और सिंचाई का जल उपलब्ध करवाने की महत्वाकांक्षी योजना है, जिस के लिए 2017 से कवायद शुरू हुई थी, पर राजनैतिक दांव पेंच और क्रेडिट लेने की होड़ के बिच ये प्रोजेक्ट तब से फंसा हुआ, जिस के बारे में ‘प्रयास’ के अप्रेल-जून अंक में चंचल ने विस्तार से लिखा है।
मैं और मनीष जयपुर जंक्शन से सुबह 7:30 बजे चले, ट्रेन दौसा से होते हुए बांदीकुई पहुंची, मगर तब ट्रैन चूँकि लेट थी, तो पहुँचने तक हमें 10 बज चुके थे। हमारे पास एक डायरी जिसमे किराने के सामान और सब्जी वगैरह का हिसाब लिखा था, एक पेन और पानी की बोतल थी। जंक्शन से निकलते ही एक बड़ा सा रेलवे स्कुल दिखा फिर एक पार्क, गाँधी ग्राउंड, रेलवे पुलिस ट्रेनिंग सेंटर और अंत में सबसे से चौंकाने वाला एक सुन्दर सा चर्च दिखा। यहां तक पहुँचते पहुँचते इतना समझ आ चुका था की यहाँ राजस्थान के आम कस्बों से कुछ तो अलग है। समय से लेट हम, चाह कर भी वहां रुक नहीं सकते थे, हमें गूलर चौराहा पहुंचना था, जहां मोर्चा के साथ दो कार्यक्रम मिस होने के बाद तीसरी जगह शामिल होने वाले थे। साफ सफाई और चौड़ी सड़को वाला, बांदीकुई नगर पालिका क्षेत्र जंक्सन से लगभग ढाई तीन किलोमीटर तक हमारे साथ चला जिसके बाद ग्रामीण क्षेत्र शुरू हो गया। ढूंढारी बोलते, हर बार मेनुअली किराया सेट करने वाले (चल उतनी दूर के 10 दे दिए टाइप) अंकल जब ई-रिक्शा चला रहे थे तो एहसास हुआ की गांव में भी सड़के नयी और ‘स्मूथ’ है, ये फीलिंग और स्ट्रॉन्ग्ली आयी क्यूंकि, हाल ही में मैंने दक्षिण हरियाणा की सड़के देखी थी, और मुझे एहसास हुआ था की सड़के खराब होने से पूरा क्षेत्र कैसे विकास में पिछड़ जाता है। गूलर चौक चौराहे ए.के.ए. राजेश पायलट सर्कल के चारों तरफ वेल-प्लांड मार्केट है, सर्किल के पास एक प्रतीक्षालय बना है, जहां कुछ नए हुक्के बिकने की प्रतीक्षा कर रहे थे। मनीष ने वहां से एक सफ़ेद तौलिया लिया, जो धुप का एंटी डॉट है, उसके पास नया तौलिया आते ही मेरे वाला अचानक पुराना लगने लगा। दुकान वाले से हमने पूछा की ERCP को लेकर यहाँ कुछ काम चल रहा है? तो उसने ऐसे किसी नाम के प्रति अनजान होने का भाव आ गया, हमने कहा की ये नहर का पानी लाने बारे में है, तब उसने सामने इसारा करते हुए कहा की ‘हाँ, पाइप आने शुरू हो गए है। ‘ वो जल जीवन मिशन के द्वारा पीने के पानी की सप्लाई की बात कर रहा था।
कुछ देर बाद गूलर चौक पर तीन गाड़ियां आयी, पहली गाड़ी रुकी पवन भजाक उसी में बैठे थे, हम लोग उसी गाड़ी में बैठ गए, गाड़ी चली तो बातों का सिलसिला शुरू हुआ, इधर उधर की कुछ बातों के बाद मैंने सीधे पूछा ‘आप लोगों की मांगें क्या है?’ पवन जी और बच्चन जी बताने लगे की हमारी दो मांगे है, केंद्र सरकार से बजट की मांग है और राज्य सरकार से DPR में बांध जुड़वाने की। डीपीआर मानी डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट, जिसमें प्रोजेक्ट से जुड़ी योजना, सामग्री की जानकारी, डिजाइन सहित उससे जुडी व्यापक सूचना होती है। थोड़ी देर में हम अरनिया पहुंचें, रास्ते में एक आदमी ने हाथ से इशारा किया तो गाड़ियां वहीं पास मकान के सामने जा कर रुक गयी। जब गाड़ी से उतरे तो देखा ये वैसा ही गांव है जैसा प्रदेश के किसी भी कोने में हो सकता है, बस अंतर ये है कि जहां शहरीकरण के चपेट में हम लोगों ने एक जगह उठने-बैठने की गांवों की परंपरा से दुरी बना ली है, ऐसे दौर में भी लाल पगड़ी बांधे और हुक्का लिए पटलाई करते बुजुर्गों को देख पाना ही मनोरम था। मकान के दूर दूसरे कोने में कुछ कमरे बने थे जिनके सामने रखी खाटों पर बुजर्गों की छत्रछाया से परे लड़के चुहल में व्यस्त थे, पवन सीधे उसी तरफ चले गए। हम जिस गाड़ी में थे, उसके पीछे एक थोड़ी बड़ी गाड़ी चल रही थी, फॉर्च्यूनर रही होगी। गाड़ी से एक महिला उतरी, ठेठ ग्रामीण ओढ़नी वाली पोशाक, आँखों में तेज, और चेहरे पर आत्मविश्वास। वो सीधे रसोई की तरफ गयी, उस तरफ 15-20 महिलाएं ग्रुप में बैठी थी, और इन लोगों के आने का ही इंतज़ार किया जा रहा था। अपने ही जैसी दिखने वाली महिला, पर कुछ साहसी और फिर बिना घूंघट के, जल्द ही उनके बीच आकर्षण और गॉसिप का विषय बन गयी। मैंने पूछा तो किसी ने बताया ये राजेश्वरी मीणा है। मेरे दिमाग में कुछ खबरें फ्लेश करने लगी ‘ये पीली ओढ़नी वाली महिला आखिर है कौन, जो राहुल गाँधी की सभा में ERCP का बैनर दिखा रही है’ ।
तीसरी गाड़ी से कुछ लोग निकलें, जिनमें से एक ने बड़ा सा तिरंगा पकड़ा था जिसकी सफ़ेद पट्टी पर लिखा था ERCP पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना; पकड़ने वाले ने हलकी सलवटों वाला साधारण शर्ट-जींस और सादा जूती पहनी हुई थी, बाल कुछ कुछ पके हुए थे, दाढ़ी बेतरतीब बढ़ी हुई थी । तभी पवन जी ने मिलाया, ये है हमारे प्रदेशाध्यक्ष, जवान सिंह मोहचा जी। मैं कुछ हैरान सा हुआ, मन में भाव आया, इतने बड़े मिशन और इन चर्चित युवाओं का नेतृत्व ये साधारण सा दिखने वाला लड़का कर पाता होगा। खैर, मैनें आगे बढ़ कर हाथ मिलाया, साधारण परिचय के बाद उन्होंने सीधा हमें इआरसीपी मोर्चा के सदस्य के जैसे ही ट्रीट करना शुरू कर दिया, यहां तक की उन्होंने हमसे पूछा कि आप लोग कहाँ के रहने वाले हो और फिर तुरंत जयपुर ग्रामीण में काम करने वाले अपने साथियों को फोन मिला हमसे बात भी करवा दी। वापस लौटने तक भी उन्हें ये समझा पाने में विफल रहे कि हम ईआरसीपी आंदोलन से सीधे नहीं जुड़े है, या शायद वो समझना ही नहीं चाहते थे। वो शायद ठीक भी रहा, जब तक उनके साथ रहे, टीम के लोगों की तरह ही रहे, सब लोगों ने ये महसूस ही नहीं होने दिया कि हम बाहर से आये है।
कुछ देर बाद आस पास के लोग भी जमा हो गए और औपचारिक बातों के बाद मुद्दे की बातें शुरू हुई, ERCP मोर्चा के करोली जिलाध्यक्ष बच्चन जी ने मोर्चा का परिचय करवाते हुए शुरुआत की और फिर जवान सिंह मोहचा जी ने मोर्चा संभाला
‘एक बार सब जोरदार नारा लगाएंगे ‘ बस्ती माता की जय’, मैं आपको बता दूँ की हम ERCP मोर्चा के लोग 13 जिलों के लिए पानी की लाने के लिए लगे हुए, हम किसी पार्टी के लिए नहीं बल्कि चम्बल के पानी के लड़ रहे है। अगर पानी आएगा तो हमारा धंधा चलेगा और हमरे बच्चे पढ़ेंगे लिखेंगे, कल कारखाने चलेंगे, तो मेरा हाथ जोड़ कर निवेदन है की नेताओं का झंडा उठाना छोड़ो और अपने लिए पाणी की लड़ाई लड़ो। एक बाद सब मेरे साथ बोलेंगे बस्ती माता की जय।
और पानी तो आएगा पटेलों, ये तो पक्की बात है, लेकिन दिक्कत ये है की आप लोगो के पड़ोस से निकल जायेगा और आपके खेत में नहीं आएगा, आपके नजदीक की बांध को लिस्ट में जुड़वाना पड़ेगा, अगर ये ,मौका हाथ से निकल दिया तो आने वाली पीढ़ियां भूखों मर जाएगी। आपको अपने हक़ के लिए लड़ना पड़ेगा। जय जवान जय किसान।’
इतने जोशीले अंदाज में भाषण सुनने के बाद मेरे मन में जितनी भी शंकाएं थी वो सब दूर हो गयी, मुझे समझ आ गया की लम्बी लड़ाई लड़ने के लिए जरुरी है की लीडरशिप जमीन से निकल कर आये, जो अपनी भाषा में, होने हाव भाव से अपनों को समझा सके और अपनेपन में बांध सके। सिर्फ चार किताबे पढ़ने से वोट लेने वाला नेता तो फिर भी बना जा सकता है, पर चोट सहने वाला नेता नहीं बना जा सकता, उसके लिए पसीने की सुगंध क्या होती है इसका अहसास होना जरुरी है।
मोहचा जी के बाद राजेश्वरी जी का भाषण हुआ, वो तेजस्विता चेहरे पर लिए बुलंद आवाज में बोलने लगी,
‘यहाँ उपस्थित काकाओं बाबाओं को प्रणाम। ‘आपके यहां पानी की समस्या है या नहीं ?’ जवाब आता है ‘खूब है’; ‘ अब जब जमीन में ही पानी नहीं रहा तो बोरवेल पानी की समस्या का समाधान नहीं है, अब एक ही समाधान है - नदियों के पानी को नहरों और बांधों के माध्यम से हमारे खेतों में लाना। इसी के लिए प्रोजेक्ट है ‘ERCP’, 2017 का ये प्रोजेक्ट है; 2023 आ गया है अभी कोई प्रोग्रेस नहीं हुई। किसान हित में इतना बड़ा प्रोजेक्ट भविष्य में नहीं आने वाला है; आप लोगों को इसके बारे जानना चाहिए। जागरूकता फ़ैलाने के लिए ही ERCP संयुक्त मौर्चा बनाया गया है। हमारे प्रदेशाध्यक्ष जवान सिंह मोहचा जी के नेतृत्व में हम गांव गांव जा रहे हैं। चम्बल बारामासी नदी है, हमें सिर्फ इसका एक महीने का ओवरफ्लो होने वाला पानी चाहिए। ये लड़ाई सिर्फ इस संघटन की नहीं है; ना ही संघटन अकेला लड़ सकता है। आप लोग आइये, इस सर्वसमाज, सर्वधर्म की लड़ाई को मजबूत करिये। आपके जनप्रतिनिधियों से सवाल करिए; दोनों सरकारें आपको गुमराह करने की कोशिश करेगी; आप जागरूक रहिये। राम राम सा।’ जब तक वो बोल रही थी लग रहा था उपस्थित जनसैलाब को बांध सा लिया हो, महिला सशक्तिकरण की सारी थ्योरी जो क्लासरूम में पढ़ी थी आँखों के सामने महसूस कर पा रहा हूँ।
फिर पवन भजाक जी की बारी थी, वे इसी क्षेत्र से जिला परिषद् सदस्य हैं, उन्होंने कहा की आप सब लोगों को बचपन से जानता हूँ, ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता, पूर्व वक्ताओं ने सारी बात समझा दी है है, मेरा बस इतना निवेदन है की कल एसडीएम बांदीकुई को हम मिल कर ज्ञापन देंगे, आप सब लोग पधारना, और उसके लोगों को सधे हुए शब्दों में आगे के कार्यक्रम की पूरी रुपरेखा और तकनीकी आयाम समझाए । जहां जवान सिंह की बातों में आक्रोश झलकता वहीँ पवन भजाक के शब्दों में गंभीरता और दृढनिश्चत दीखता। ये ‘डेडली कॉम्बिनेशन’ बड़े बदलाव की मशाल जलाने पूरी तरह से तैयार था। फिर वहां से ये जुगनू निकले तो एक गांव से दूसरे, तीसरे समां जलाते चल पड़े, शाम ढलने वाली थी, रात को हमें जगदीश गिरी सर से मिलना था, हम वहाँ से निकलने। और बदलाव के चिंगारे भी एक जिले से अगले जिले में चलते रहे, और अब पुरे पूर्वी राजस्थान में फैलने तैयार है, राजस्थान भी इन भगीरथों का पलकें भिछाये स्वागत करने को बेताब है।